दलित, बहुजन और आदिवासी पत्रकार, एकेडेमिक्स और कार्यकर्ताओं की एक ऑनलाइन चर्चा में एक बात साफ़ उभर कर आई—आधुनिक भारत के एकेडेमिया में जातिवाद न सिर्फ़ पनप रहा है, बल्कि यही उसकी मुख्य पहचान है
July 8th 2021