ए मणि द्वारा
मैं रफ सेट्स की एक प्रमुख शोधकर्ता और अंतरराष्ट्रीय रफ सेट समाज की एक वरिष्ठ निर्वाचित सदस्या हूँ। मैं शैक्षणिक समुदाय की कुछ समलैंगिक ट्रांस महिलाओं में से एक हूँ (मैं अपनी पहचान एक महिला के रूप में करती हूँ और मेरे सर्वनाम she/hers/her या वह / उसकी / उसके हैं)। मेरे अनुसंधान के क्षेत्र बीजगणित, तर्क, रफ सेट, अस्पष्टता और इनसे जुड़े क्षेत्रों के औपचारिक दृष्टिकोण हैं। हाल तक, मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ी हुई थी। लेकिन मेरा कैरियर काफी असामान्य रहा है (ए मणि, 2019ए) – इसके पहलुओं का उल्लेख नीचे किया गया है। इस लेख में मैं एक एलटीक्यू महिला के रूप में अपने कुछ अनुभवों के बारे में बताऊँगी। इसके द्वारा विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी महिलाएं जिन मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना करती हैं, उन्हें चित्रित करना चाहूँगी।
संपादक की टिप्पणी: पाठकों को सलाह दी जाती है कि इस लेख में प्रयुक्त शब्दावली पर स्पष्टीकरण के लिए इस संसाधन लेख को देखें।
जब कोई कहता है कि उन्होंने अच्छी तरह से खाया है, या ये कि वे खुश हैं या ये कि गाड़ी बहुत तेज है, तो वे कई चीजों के बारे में अस्पष्ट हैं। इस तरह के अस्पष्ट बयान किसी वास्तविक जीवन की स्थिति को पूरी तरह से वर्णित नहीं कर पाते। वास्तव में, मानव भाषाओं की अधिकांश अभिव्यक्तियों में अस्पष्टता (अनिश्चितता के विपरीत) सर्वव्यापी है। दरअसल, अस्पष्टता के औपचारिक दृष्टिकोण गणितीय हैं। आधुनिक गणित केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है – यह अमूर्तता, प्रतिनिधित्व, अभिकलन, तार्किक निष्कर्ष और वस्तुओं या प्रक्रियाओं के उपयुक्त संग्रह के निष्कर्षों के बारे में भी है। अस्पष्टता अनुसंधान के सबसे रोमांचक क्षेत्रों में से एक है जो कृत्रिम बुद्धि और मानव तर्क की समझ की नींव बनाता है।
हालाँकि नौ साल की उम्र से पहले के जीवन की मेरी यादें अस्पष्ट हैं, लिंग के पहलुओं की समझ मुझ में थी। जब मैं छह साल की थी तब मुझे एहसास हुआ कि मैं एक लड़की हूँ। यह मेरे प्रारंभिक अवस्था से सौंदर्य और स्त्रीत्व के प्रति विचारों के विकास से सम्बन्धित है। ये हमेशा गैर-पारंपरिक रहे हैं। मेरी प्रेरणा स्रोत मजबूत और मेहनती महिलाएँ थीं जिनमें से एक मेरे माध्यमिक स्कूल की विज्ञान शिक्षिका भी थीं। तब मैंने सीखा कि कम से कम मेकअप में भी एक व्यक्ति सुंदर लग सकता है और सुंदरता शारीरिक गतिविधियों में भी निहित है। लेकिन मैं हमेशा से अंतर्मुखी थी और कभी भी किसी के साथ लिंग के बारे में कोई बात नहीं करती थी।
मैं हमेशा से अध्ययनशील और बेहद कल्पनाशील रही हूँ। नौ साल की उम्र तक मेरे पास प्रभावशाली मेरिट कार्ड का एक विशाल संग्रह बन चुका था। शारीरिक रूप से, मैं अपने स्कूल के दिनों में स्वाभाविक रूप से उभयलिंगी थी – पतली और मजबूत – और मेरा पसंदीदा खेल क्रिकेट था। मेरे सह-शैक्षिक स्कूलों में छात्र एलजीबीटीक्यू मामलों के बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं रखते थे, इसलिए मुझे किसी भी तरह के शोषण या धौंस का सामना नहीं करना पड़ा। मेरे स्कूल के दिनों का विवरण इस ब्लॉग पोस्ट में हैं।
ट्रांज़िशनिंग के निशान
वर्ष 2000 से पहले ट्रांस मामलों (विशेषकर मनोविज्ञान के संदर्भ में) को पितृसत्तात्मक गतिकी के कारण दुनिया के अधिकांश हिस्सों में आमतौर पर समझा नहीं गया था। औपचारिक रूप से मेरा चिकित्सीय और कानूनी ट्रांज़िशन वर्ष 2012 से 2014 के बीच हुआ था। (आधुनिक लिंग सिद्धांत के अनुसार ट्रांस महिलाएँ शारीरिक समस्या के साथ जन्म लेती हैं और इसलिए ‘मेडिकल ट्रांज़िशन’ शब्द किसी के शरीर की यौन विशेषताओं को मौलिक रूप से बदलने को संदर्भित करता है)। इस दौरान मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट की पढ़ाई भी कर रही थी। मैं अपने स्कूल के दिनों से ही ट्रांज़िशन करना चाहती थी लेकिन समर्थन और सुविधाओं की कमी के कारण ऐसा कर नहीं सकी।

वास्तव में, एक विशेष मौके पर किसी विशिष्ट मनोचिकित्सक ने अपने पूर्वाग्रह के कारण मेरी मदद करने से इनकार कर दिया (भारत में, ट्रांज़िशनिंग के लिए मनोचिकित्सकों से प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक था और है – वर्तमान स्थिति 2014 के समावेशी एनऐएलएसऐ फैसले के विपरीत 2019 के त्रुटिपूर्ण ट्रांस बिल के कारण है)। मेरे तथाकथित माता-पिता ने भी अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण मेरी योजनाओं का विरोध किया।
मेरे मानसिक स्वास्थ्य की यात्रा
ट्रांज़िशनिंग से पहले मैं सबसे छिपती रहती थी और गैर-मिलनसार थी। मैं अक्सर अवसाद और चिंता से ग्रस्त रहती और मेरी आत्महत्या की प्रवृत्ति तीव्र हो चुकी थी – क्योंकि मेरे पास इन सब से बच निकलने के लिए कोई वास्तविक विकल्प नहीं थे। इन सब से मेरा अकादमिक प्रदर्शन (कम से कम स्थिरता के दृष्टिकोण से) प्रभावित होने लगा। स्कूल या कॉलेज या दूसरी जगहों पर मुश्किल से कोई सम्बन्धित परामर्श की सुविधा थी। इसके बावजूद मैं पत्रिकाओं और पुस्तकों के माध्यम से ट्रांस और सम्बन्धित मुद्दों में हो रहे विकास पर नज़र रखती थी।
जैसा की पिछले अनुच्छेद में उल्लिखित है, मैं जिन लक्षणों से गुज़री थी, उनमें से कुछ लक्षण लिंग डिस्फोरिया के उदाहरण हैं। सरल शब्दों में यह एक व्यक्ति की स्वयं की भावना (लिंग की पहचान और अभिव्यक्ति के सम्बन्ध में) और उसके शरीर के आंतरिक और बाहरी हिस्सों के बीच बेमेल की भावना को संदर्भित करता है। यह किसी व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं या दूसरों के शरीर के प्रति धारणा या किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति या सामाजिक तौर पर बात-चित के सम्बन्ध में व्यक्त किया जा सकता है। ऐसे लक्षणों के कुछ उदाहरण हैं:
– माध्यमिक विशेषताएं ज्यादातर पुरुषों जैसा होने के कारण चरम बेचैनी, अक्सर पुरुषों का तिरस्कार करने की हद तक
– युवावस्था से शरीर के विकृत होने की भावना
– पुरुषों वाली माध्यमिक विशेषताओं को ख़त्म करने में असमर्थता के कारण अवसाद
– टेस्टोस्टेरोन विषाक्तता की एक विशिष्ट भावना
– बाह्य रूप से पुरूषों वाली विशेषताओं की लगातार बढ़ोतरी के कारण एक अमानवीय समाज में होने की प्रबल भावना
– मौजूदा विशेषताओं में स्त्रीकरण के लुप्त होने से अवसाद और सामान्यीकृत अवसाद
– अधिकांश ट्रांस महिलाएं अलग-अलग हद तक डिस्फोरिया का अनुभव करती हैं। लिंग डिस्फोरिया के बारे में अधिक जानकारी मेरे 2014 के लेख से मिल सकती है। इस लेख में सूचीबद्ध तीस लक्षणों के सबसेट ट्रांस महिलाओं में लिंग डिस्फोरिया की ओर संकेत करते हैं। मैंने लेख में उल्लिखित तीस में से सोलह लक्षणों का अनुभव किया है (ऊपर उल्लिखित लक्षणों सहित) और मेरे शरीर में हुए ऐसे ही एक ‘पर्याप्त विकृतता‘ के दौरान मैंने आत्महत्या का प्रयास किया। एक सम्बन्धित अनुसंधान में (हाँ, लिंग अध्ययन पर मेरे कुछ शोध प्रकाशित हैं) मैंने तर्क दिया है कि लिंग डिस्फोरिया ट्रांस महिलाओं में अकेलेपन के कई कारणों में से एक है।
– वास्तव में मैंने लिंग डिस्फोरिया के एक और सामान्य लक्षण का भी अनुभव किया है – व्यक्तित्वलोप। व्यक्तित्वलोप में स्वयं या दुनिया के प्रति कुछ भावनाओं और अनुभवों का अवास्तविक महसूस होना शामिल है। इसने मेरी वास्तविकता के प्रति धारणा को नहीं बदला, लेकिन बाहरी दुनिया से अलग होने की भावना को प्रेरित किया, जिससे मेरी भावनाएं सुन्न हो गई। यह ज्ञात है कि अनिष्ट या शत्रुतापूर्ण वातावरण में व्यक्तित्वलोप के पहलुओं का अनुभव करने वाले लोगों के और भी ज्यादा निर्लिप्त होने की संभावना होती है। मुझे लगता है कि यह मेरे अनुभवों के अनुरूप है।
– जबकि वर्ष 2012 मेरे लिए शोध कैरियर के दृष्टिकोण से सफल रहा, मैंने हताश होकर ट्रांज़िशन करने का फैसला किया। मेरे पास कोई वास्तविक विकल्प नहीं था। वास्तव में मैं लिंग डिस्फोरिया के लम्बे वक़्त तक रहने वाले प्रभाव के कारण सफलतापूर्वक ट्रांज़िशन करने के बारे में सुनिश्चित नहीं थी।
– ट्रांज़िशन के पूर्व मेरे अप्रकाशित गणितीय अनुसंधान का एक बड़ा हिस्सा मुख्य धारा के अनुसंधान से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ नहीं था। मेरे काम का यह हिस्सा, विशेष रूप से मेरे गणितीय विकास पर व्यक्तित्वलोप के प्रभाव पर प्रकाश डालता है।
– कलकत्ता विश्वविद्यालय में बीएससी और आईएसआई कोलकाता से सांख्यिकी में स्नातकोत्तर के बाद से ही मैं अनुसंधान-स्तर के गणित में शामिल हो गई थी। इसके बाद शुद्ध गणित में एमएससी की डिग्री प्राप्त करने और 2011 में सीएसआईआर-एनईटी में उत्तीर्ण होने के पहले से ही शीर्ष स्तर की पत्रिकाओं में मेरे कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके थे। पहले गणित में मेरे शोध की रुचि विश्लेषण, अर्ध-समूहों और आंशिक बीजगणित तक ही सीमित थी। एमएससी से पहले मैं किसी संस्थान से औपचारिक रूप से जुड़ी हुई नहीं थी और स्वतंत्र रूप से काम कर रही थी। इससे मुझे अनुसंधान-स्तर के गणित (और दर्शन) में एक पृष्ठभूमि बनाने के लिए काफी समय मिला। इस समय के दौरान मैं एक अंशकालिक शिक्षक भी थी और मेरे पास उप-क्षेत्रों में अनुसंधान समूहों के साथ जुड़ने के कई विकल्प मौजूद थे। पर इनमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। समय के साथ मेरे अनुसंधान की रूचि बीजगणित, रफ सेट, अस्पष्टता और तर्क में स्थानांतरित हो गई और मैंने ट्रांज़िशन के पहले, उसके दौरान और बाद में कई सारे शोध प्रकाशित किए। यह ध्यान देने की बात है कि मेरे ट्रांज़िशन के दौरान और बाद में मेरी अनुसंधान उत्पादकता काफी बढ़ गई थी
मेरे ट्रांज़िशन के पहले के जीवन के बहिष्करण और अलगाव ने मेरे अनुसंधान सहयोगों की प्रकृति को प्रभावित किया। अनुसंधान सहयोग के कई रूप हो सकते हैं: किसी और के अनुसंधान का उल्लेख करना, एक वैकल्पिक सिद्धांत पर काम करना जो दूसरे सिद्धांत को नकारता है, एक संयुक्त अनुसंधान पर काम करना, एक वैकल्पिक सिद्धांत विकसित करना जो किसी दूसरे सिद्धांत का पूरक बने और शिक्षण समीक्षा या नोट्स से अनुसंधान के विचारों को विकसित करना – अधिक विवरण (ए मणि, 2019ए) में पाया जा सकता है। ये यथास्थिति द्वारा संदिग्ध तर्कसंगतताओं के आधार पर पदानुक्रम में आयोजित किए जाते हैं। ये पदानुक्रम विशेष रूप से मेरे ट्रांज़िशन से पूर्व के दिनों के दौरान अनुकूल नहीं थे – जिसके दौरान मैं संयुक्त रूप से किसी अधिकृत शोध पत्र का हिस्सा नहीं थी। वास्तव में वर्ष 2016 तक मेरे सभी प्रकाशित शोध पत्र मैंने अकेले ही लिखे थे। आज मैं कह सकती हूँ कि पिछले कुछ वर्षों में इसमें काफी सुधार हुआ है। 2018 में मैं जनरल रफ सेट्स में बीजगणितीय विधियों के एक शोध खंड के आधे हिस्से की लेखक और सह-संपादक रही हूँ।
शैक्षणिक समुदाय में एलक्यूटी होना
ट्रांज़िशन के दौरान और बाद मुझे निःसंदेह अकादमिक दुनिया में काफी भेदभाव और कट्टरता का सामना करना पड़ा है। भारतीय शैक्षणिक समुदाय में भेदभाव का सामना करना एक बात है और आपके साथ हुए भेदभाव को साबित कर पाना दूसरी बात है।
एक महिला के रूप में ट्रांज़िशन करने के बाद अपने कानूनी पहचान वाले दस्तावेजों में बदलावों को पंजीकृत करने में मुझे ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। विश्वविद्यालय में भी यह काम सुचारू रूप से हुआ और लगभग सभी लोग सहायक थे। ट्रांज़िशन के दौरान और बाद में भारतीय शैक्षणिक समुदाय के कुछ लोग (ज्यादातर पुरुष) मेरे साथ कट्टर, नारी-द्वेषी और ट्रांस-फोबिक तरीकों से पेश आए। दिलचस्प बात यह है कि उनका व्यवहार दूसरी महिलाओं के प्रति उनके व्यवहार और पितृसत्तात्मक विचारों से जुड़ा हुआ था। कुछ अन्य लोगों ने तथ्यों को समायोजित करने के लिए अपना समय लिया और दूसरों ने उत्कृष्ट रूप से समर्थन किया। जब मैं पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो एहसास होता है कि नारीवाद पर मेरे प्रभुत्व से मुझे लोगों को प्रबंधित करने में काफी मदद मिली। नारीवाद (कार्यात्मक नारीवाद) का मेरा संस्करण कुछ अंतरानुभागीय, समलैंगिक महिला, मार्क्सवादी, गीक और समाजवादी नारीवाद के मिश्रण से बना है। मैं विशेष रूप से नारीवादी विचारों का उपयोग करके तेजी से फैसले करने की कोशिश करती हूँ और व्यावहारिक संदर्भों में न्यूनतम लेकिन प्रभावी संचार के तरीकों की खोज करती हूँ (संभवतया मेम के द्वारा क्योंकि वे सांस्कृतिक विकास की इकाइयां हैं)।
भेदभाव और भेदभाव को पैदा करने वाले रवैय्ये का मुकाबला करने के लिए जितनी रणनीतियां होती हैं, मेरा मानना है कि उनमें से संवेदनशीलता का लगातार प्रयास सबसे महत्वपूर्ण है।

भारत के अधिकांश हिस्सों में एक खुली समलैंगिक संस्कृति का अभाव है। लोग अक्सर असहिष्णु, पितृसत्तात्मक और होमोफोबिक होते हैं। हालाँकि शहरी अकादमिक परिवेश के हालात काफी बेहतर होते हैं लेकिन समलैंगिक महिलाएं ज्यादातर अपने रिश्तों के बारे में चुप रहती हैं। मैं कई समलैंगिक रिश्तों में रही हूँ (ट्रांजीशन से पहले और बाद में) – ये भी छिपाने या आधा-छिपाने की सामान्य प्रवृत्ति से प्रभावित हुए हैं। इस तरह के कथानक एलटीक्यू महिलाओं के अलगाव का कारण बनते हैं और उनकी इष्टतम सक्रियता नीतियों को निर्धारित करने में एक भूमिका निभाते हैं क्योंकि जो व्यक्तिगत है वह राजनीतिक है।
कुछ सुझाव
एलटीक्यू महिलाओं को प्रमुख रूप से असमलैंगिक-पितृसत्तात्मक समाजों और उनके द्वारा शाषित शैक्षणिक निकायों (विशेष रूप से भारतीय संदर्भ) में हाशिए, बहिष्कार और अलगाव का सामना करना पड़ सकता है। यह जरूरी है कि विशेष रूप से अकादमिक निकाय अधिक सत्कारी और समावेशी वातावरण बनाने की कोशिश करें, यौन उत्पीड़न से निपटने की पुरानी प्रक्रियाओं में बदलाव लाएं, सकारात्मक भेदभाव (आरक्षण) प्रदान करें और सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाएं।
शैक्षणिक समुदाय के विभिन्न स्तरों पर दूसरी एलटीक्यू महिलाओं के साथ अपने अनुभवों और बातचीत के आधार पर मैं समावेशी और भेदभाव मुक्त वातावरण के निर्माण के लिए कुछ सुझाव दे रही हूँ।
– सुनिश्चित करें कि एलटीक्यू छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों की चिंताओं के प्रति एचआर नीतियां (जिसमें यौन उत्पीड़न और धौंस प्रतिरोधी नीतियां शामिल हैं) जागरूक और उत्तरदायी हों। उदाहरण के लिए – ट्रांस महिलाओं को अपने ट्रांज़िशन के दौरान 3 से 6 महीने की छुट्टी की आवश्यकता हो सकती है, उच्च शैक्षणिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की उपलब्धता जो एलटीक्यू महिलाओं की समस्याओं को रचनात्मक रूप से संभाल सके, इत्यादि।
– उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में लैंगिकता और लिंग के बुनियादी विषयों को शामिल किया जा सकता है ताकि छात्र जागरूक हो सकें एवं संस्थानों में अपने और अपने समलैंगिक, ट्रांस या क्वीर साथियों के प्रति संवेदनशील बन सकें।
– संस्थानों में क्वीर अध्ययन मंडल, सहकर्मी सहायता समूह और एक ऐसा डिजिटल या भौतिक एलटीक्यू+ संसाधन केंद्र विकसित करना जिसमें लैंगिकता और लिंग सम्बन्धी मुद्दों पर पढ़ने की सामग्री उपलब्ध हो।
– संस्थानों में कार्यात्मक एलटीक्यू+ सहायता समूह बनाने के लिए संस्थान अनुमति दे सकते हैं और क्वीर-अनुकूल संस्थागत हितधारकों से संपर्क कर सकते हैं ताकि धौंस, उत्पीड़न, शोषण जैसी किसी भी प्रकार की हिंसा से पूरी ईमानदारी और संवेदनशीलता के साथ निपटा जा सके।
-क्वीर-अनुकूल समर्थक समूह भी नए लोगों को उन्मुख करने के लिए समय-समय पर संवेदीकरण कार्यकर्मों को आयोजित कर सकते हैं।
– इस लेख में जिन मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों पर चर्चा की गई है वे असहिष्णु, अत्याचारी और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण के साथ कसकर जुड़े हुए हैं (एक दुष्चक्र का हिस्सा हैं)। इसलिए यह जरुरी है कि ज्यादा से ज्यादा एलटीक्यू+ महिलाएं अपने यौन-अभिविन्यास का स्व-प्रकटीकरण करें, अपने अधिकारों का दावा करें और अपना जीवन जिएं। यौन-अभिविन्यास का स्व-प्रकटीकरण प्रणालीगत उत्पीड़न के कारण होने वाले मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में खुलासा करने को भी संदर्भित करता है। जागरूकता परिवर्तन का एक शक्तिशाली घटक होता है।
– अन्तिम पर समान रूप से अहम बात यह है कि परिवर्तन के मुद्दों की एकाधिक प्रकृति के विषय के बारे में जनता को शिक्षित करना आवश्यक है।
ए मणि – जुलाई, 2018
लेखक जैव: ए मणि शुद्ध गणित और तर्कशास्त्र में शोधकर्ता हैं।
आभार: मैं उपयोगी सुझाव के लिए टीआईएसएस गुवाहाटी की सायनी बसाक और टीएलओएस टीम को धन्यवाद देना चाहूंगी।
टीएलओएस छवियों के लिए ए मणि को धन्यवाद देता है!
नोट: संसाधन लेख के अंत में क्वीर समर्थन समूहों की सूची पाई जा सकती है।
Illustration by Ipsa Jain. Title: Change Note from the artist: Escaping the clouds by accepting the colors of gender identity.
This piece is part of a series supported by India Alliance.